Ques . - अलाउद्दीन खिलजी के सुधारों पर प्रकाश डालें
Ans - अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से उत्तर-मध्य भारत तक फैला हुआ था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ वर्षों तक कोई शासक स्थापित नहीं कर सका।
अलाउद्दीन के दरबार में अमीर खुसरों तथा हसन निजामी जैसे उच्च कोटि के विद्धानों को संरक्षण प्राप्त था। स्थापत्य कला के क्षेत्र में अलाउद्दीन खिलजी ने वृत्ताकार 'अलाई दरवाजा' अथवा 'कुश्क-ए-शिकार' का निर्माण करवाया। उसके द्वारा बनाया गया 'अलाई दरवाजा' प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना जाता है। इसने सीरी के किले, हजार खम्भा महल का निर्माण किया। अलाउद्दिन खिलजी ने जमीन नपाई का आधा राजस्व के रूप में लेता था।
राज्याभिषेक के बाद उत्पन्न कठिनाईयों का सफलता पूर्वक सामना करते हुए अलाउद्दीन ने कठोर शासन व्यवस्था के अन्तर्गत अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना प्रारम्भ किया। अपनी प्रारम्भिक सफलताओं से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन ने 'सिकन्दर द्वितीय' (सानी) की उपाधि ग्रहण कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया। उसने विश्व-विजय एवं एक नवीन धर्म को स्थापित करने के अपने विचार को अपने मित्र एवं दिल्ली के कोतवाल 'अलाउल मुल्क' के समझाने पर त्याग दिया। यद्यपि अलाउद्दीन ने ख़लीफ़ा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए ‘यामिन-उल-ख़िलाफ़त-नासिरी-अमीर-उल-मोमिनीन’ की उपाधि ग्रहण की, किन्तु उसने ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृत लेनी आवश्यक नहीं समझी। उलेमा वर्ग को भी अपने शासन कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने शासन में इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों को प्रमुखता न देकर राज्यहित को सर्वोपरि माना।
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किये गये जिनका सम्बन्ध भू-राजस्व प्रणाली एवं व्यापार-वाणिज्य (बाजार नियंत्रण या मूल्य निर्धारण पद्धति) से था। अलाउद्दीन द्वारा किया गया आर्थिक सुधार राजनीति से सम्बंधित था। वह एक महत्वकांशी शासक तथा सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहता था। इसके लिए उसने सबसे पहले आर्थिक क्षेत्र में सुधार किया। आर्थिक क्षेत्र में सुधार होने से एक विशाल सेना संगठित की जा सकी जिससे भारत के राज्यों पर विजय प्राप्त हुई। इस समय लगान, राज्य की आमदनी का प्रमुख साधन था। इसलिए राज्य के आर्थिक साधनों में वृद्धि के लिए लगान व्यवस्था में सुधार आवश्यक थे।
a) बाजार नियंत्रण या मूल्य निर्धारण पद्धति - अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण सुधार उसकी मूल्य निर्धारण पद्धति या बाजार नियंत्रण था। इसकी जानकारी बरनी की रचना-तारीखे-ए- फिरोजशाही तथा फ़तवा-ए-जहांदारी, अमीर खुसरो की रचना खाजईनुल फुतूह, इसामी की रचना फुतूह-उस-सलातीन तथा इब्नबतूता के यात्रा वृतांत रेहला आदि से होती है।
मूल्य नियंत्रण के उदेश्यों को लेकर आधुनिक एवं समकालीन इतिहासकारों के विचारों में मतभेद है। इतिहासकार बरनी ने इसे सैन्य उदेश्य बताया। अमीर खुसरो ने मूल्य नियंत्रण के कार्य को आम प्रजा की भलाई के लिए बताया। वही कुछ अन्य इतिहासकारों ने साम्राज्यवादी मह्त्वाकांशा से प्रेरित बताया सैन्य कारणों को लेकर ज्यादातर आधुनिक विद्वानों में सहमति है।
अलाउद्दीन ने वस्त्रो की कीमतों का भी निर्धारण किया। यहाँ तक कि कीमतों में वृद्धि न हो सके, इसके लिए राज्य के द्वारा व्यापारियों को ब्याज उपलब्ध कराया गया। व्यापारियों को उनकी सेवा के बदले कमीशन दिया जाता था। कीमती वस्त्रो को विशेष परमिट के आधार पर ही ख़रीदा जा सकता था।
दासो, घोड़ो एवं मवेशियों के बाजार में मूल्य वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण दलालों की उपस्थिति होती थी, जो व्यापारियों एवं ग्राहकों दोनों से कमीशन वसूलते थे। अलाउद्दीन ने इन दलालों को बाजार से निष्कासित किया और इनसे सम्बंधित कुछ नियम बनाये गये। प्रत्येक व्यापारी को अपने पशुओ को सरकारी अधिकारी के समक्ष निरिक्षण करवाना होता था। इसके आधार पर ही पशुओ की श्रेणिया निर्धारित होती थी तथा निर्धारित मूल्य पर ही व्यापारियो को बेचना होता था। विभिन्न अधिकारी वर्ग ने उपरोक्त प्रक्रिया को सहयोग प्रदान किया।
बाजार नियंत्रण एवं सुधार के साथ-साथ उसने भू-राजस्व के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन किया। अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने भू-राजस्व के निर्धारण के लिए ज़मीन की माप (पैमईश) को आधार माना तथा मध्यस्थवर्ग (ख़ूत और मुक्कद्दम) को भी भू-राजस्व देने को कहा, जिस तरह आम जनता देती थी।
b) कर की मात्रा में वृद्धि - अलाउदीन खिलजी का राजस्व सुधार दो उदेश्यों से प्रेरित था:
- राज्य के लाभ में अत्यधिक वृद्धि, जिससे एक विशाल सेना का गठन किया जा सके।
- मध्यस्थ भूमिपतियो के विशेषाधिकार को समाप्त करना, क्योंकि ये राज्य को पूरा लगान नहीं देते थे और कृषको का शोषण करते थे।
साथ ही साथ इस वर्ग द्वारा उत्पन्न विद्रोह एवं उपद्रव की समस्या का समाधान हो सके। अलाउद्दीन खिलजी ने भू-राजस्व की दर उपज का 1/3 के स्थान पर 1/2 लगान के रूप में वसूलने का आदेश दिया।
- खम्स (लूटकर) में भी राज्य के हिस्से में वृद्धि की गयी। [पहले राज्य का हिस्सा 20 प्रतिशत था लेकिन अब 80% जबकि लूटने वाले को पहले 80 प्रतिशत और राज्य को 20 प्रतिशत हिस्सा मिलता था।
- नये-नये करो (tax) का आरोपण जैसे- घरही (आवासकार), चरही (चाराह्गाह्कर), घोड्ही (घोड़ो पर कर) आदि।
- अलाउद्दीन ने दोआब क्षेत्र में कर मुक्त भूमि पर केंद्रीय नियंत्रण स्थापित कर दिया और सभी भूमि अनुदान वापस ले लिए।
- धार्मिक अनुदानों के वापसी का आदेश-इकता, वक्फ, मिल्क, इनाम, इदरार जैसे कर मुक्त अनुदानों को अलाउदीन ने रद्द कर दिया।
- मध्यस्थ वर्ग (खुत, मुकद्दम, चौधरी) लगान वसूली में राज्य की मदद करते थे और इस सेवा के बदले उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त था। जिसे अलाउदीन ने समाप्त कर दिया। क्योंकि ये राज्य को पूरा लगान नहीं देते थे। किसानो का शोषण करते थे तथा अपने विशेषाधिकार का दुरूपयोग एवं विद्रोह को बढावा देते थे। अलाउदीन ने इन्हें लगान वसूली, रियायत, लगान आदि से भी वंचित कर दिया साथ ही साथ इनको घोड़े पर चड़ना, हथियार रखना, महल के वस्त्र पहनना तथा पान खाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
- भू-राजस्व के क्षेत्र में सुधार के एक अन्य प्रयास अर्थात, वैज्ञानिक तरीके से भू-राजस्व निर्धारण के लिए कदम उठाना। इसके लिए भूमि के माप को आधार बनाया गया। इसके साथ-साथ राजस्व की वसूली पर भी खिलजी ने विशेष बल दिया। इसके लिए अलग से कर्मचारियों को नियुक्त किया गया तथा बकाया राशि की वसूली के लिए दीवाने मुस्तखराज नामक अधिकारी को नियुक्त किया गया।
अलाउद्दीन के लगान एवं कर संबंधी सुधार पूर्णत: सफल सिद्ध हुए। उसने राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और साम्राज्य विस्तार के लिए प्रयाप्त साधन उपलब्ध कराये। साथ ही साथ उसने मध्यस्थ वर्ग द्वारा विद्रोह की समस्या पर नियंत्रण भी प्राप्त किया। अत: वह अपने दोनों उदेश्यों को पूरा करने में सफल रहा।
अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधार
शासन प्रबन्ध के विभिन्न क्षेत्रों में उसने बहुत से सुधार किए जिसमें से कुछ वस्तुतः मौलिक होने के अधिकारी हैं. वह प्रशासन के केन्द्रीकरण में पूर्ण विश्वास रखता था तथा उसने प्रान्तों के सूबेदारों और अन्य अधिकारियों को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा.
a) दीवान-ए-रियासत - अलाउद्दीन खिलजी ने यह एक नया मन्त्रालय खोला जिसके अधीन राजधानी के आर्थिक मामले थे. वह बाजार की सम्पूर्ण व्यवस्था का संघीय मंत्री या अधिकारी होता था. ‘याकूब’ को इस पद पर नियुक्त किया गया था.
राजमहल के कार्यों की देख-रेख ‘वकील-ए-दर’ करता था. ‘वकील-ए-दर’ के बाद ‘अमीर-ए-दाजिब’ (उत्सव अधिकारी) का पद आता था. कुछ अन्य अधिकारी भी थे जैसे-सरजांदार (सुल्तान के अंग रक्षकों का नायक), ‘अमीर-ए-आखूर’ (अश्वाधिपति), ‘शहना-ए-पील’ (गजाध्यक्ष), ‘अमीर-ए-शिकार (शाही आखेट का अधीक्षक), ‘शराबदार’ (सुल्तान के पेयों का प्रभारी), ‘मुहरदार’ (शाही मुद्रा-रक्षक) आदि.
b) पुलिस एवं गुप्तचर व्यवस्था - अलाउद्दीन खिलजी ने पुलिस व गुप्तचर विभाग को कुशल व प्रभावशाली बनाया. गर्वनर, मुस्लिम सरदार, बड़े-बड़े अधिकारियों और साधारण जनता के कार्यों और षड़यन्त्रों आदि की पूर्ण जानकारी रखने हेतु गुप्तचर व्यवस्था को बहुत महत्व दिया. कोतवाल शांति व कानून का रक्षक था तथा वह ही मुख्य पुलिस अधिकारी था. पुलिस व्यवस्था को सुधारने के लिए कई पदों का सृजन किया गया और उन पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की गई. गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी ‘बरीद-ए-मुमालिक’ होता था. उसके नियन्त्रण में अनेक बरीद (संदेश वाहक) कार्य करते थे. बरीद के अतिरिक्त अन्य सूचना दाता को ‘मुनहियन’ तथा ‘मुन्ही’ कहा जाता था.
c) सैनिक प्रबन्ध - सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने साम्राज्य विस्तार, आन्तरिक विद्रोहों को कुचलने तथा बाह्य आक्रमणों का सामना करने हेतु व एक विशाल, सुदृढ़ तथा स्थाई साम्राज्य स्थापित करने के लिए सैनिक व्यवस्था की ओर पर्याप्त ध्यान दिया. उसने बलबन की तरह प्राचीन किलों की मरम्मत करवाई और कई नए दुर्ग बनवाए.
घोड़ों को दागने तथा सैनिकों का हुलिया दर्ज करवाने के नियम बनाए. वह पहला सुल्तान था जिसने एक विशाल स्थाई सेना रखी. फरिश्ता के अनुसार “उसकी सेना में 4,75,000 सुसज्जित व वर्दीधारी घुड़सवार थे.” उसने सैनिकों को नकद वेतन देने की प्रथा चलाई तथा वृद्ध सैनिकों को सेवा-निवृत करके उन्हें पेंशन दी.
‘दीवान-ए-आरिज’ प्रत्येक सैनिक का हुलिया रखता था. अमीर खुसरो के अनुसार ‘दस हजार सैनिकों की टुकड़ी को ‘तुमन’ कहा जाता था. भलीभांति जाँच-परख कर भर्ती किए गए सैनिक को ‘मुरत्तब’ कहा जाता था. एक साधारण अश्वारोही मुरत्त को 234 टंके प्रतिवर्ष वेतन दिया जाता था. सवार का वेतन 156 टंके था. सेना की प्रत्येक इकाई में जासूस रहते थे जो सैनिक अधिकारियों के व्यवहार के विषय में सुल्तान को बराबर सूचित करते रहते थे.