Ans. - भारत में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र को अपनाया गया है जिसमें समय - समय पर विभिन्न स्तर पर विभिन्न पदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया जारी रहती है । संविधान के निर्माताओं ने इस प्रक्रिया को सम्पन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की है ।
चुनाव में हिस्सा लेने के लिए भारत में वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है अर्थात् प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को चुनाव में मत प्रयोग का अधिकार होगा चाहे वह किसी भी जाति , धर्म , भाषा स्तर व लिंग का हो । आजकल भारत में 18 वर्ष के व्यक्ति को वयस्क माना गया है । भारतीय चुनाव प्रणाली की दूसरी विशेषता यह है कि चुनाव क्षेत्रों का निर्माण क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है अर्थात् पूरे देश को निश्चित चुनाव क्षेत्रों में बाँट लिया जाता है । इस चुनाव क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा व पसंद के आधार पर मत का प्रयोग करता है । परन्तु एक निश्चित क्षेत्र से चुने जाने वाला व्यक्ति उस क्षेत्र में रहनेवाले प्रत्येक सदस्य का प्रतिनिधित्व करता है चाहे उसने उसको वोट दी हो अथवा नहीं । इस प्रकार से यह एक संयुक्त चुनाव क्षेत्र होता है । चुनाव में निर्णय बहुमत के द्वारा ही लिया जाता है । अर्थात् चुनाव में जो उम्मीदवार अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत प्राप्त करता है उसको विजयी घोषित किया जाता है । इस प्रणाली को फ.पा.दी. पो . ( फर्स्ट पास्ट दी पोस्ट ) प्रणाली कहते हैं । यद्यपि कुछ पदों जैसे राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव में आनुपातिक मत प्रणाली की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का प्रयोग किया 1 जाता है ।
भारतीय समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए संविधान के निर्माताओं ने संसद व राज्य विधान सभा की कुछ सीटों पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है ताकि इन वर्गों के भागीदारी को निश्चित किया जा सके । 1952 से लेकर आज तक 14 लोकसभा चुनाव जिस शांति व निष्पक्षता के साथ सम्पन्न हुए उससे भारतीय चुनाव प्रणाली व चुनाव आयोग की विश्वसनीयता देश व विदेशों में भी बढ़ी है । यद्यपि कुछ सुधारों की आवश्यकता अवश्य है ।