Ques. - असहयोग आंदोलन कब आरंभ हुआ ? इसके उद्देश्य तथा कार्यक्रम क्या थे ? यह आंदोलन क्यों समाप्त हुआ ? (When did the non-cooperation movement start? What were its objectives and programmes? Why did this movement end?)
Answer - असहयोग आंदोलन ( Non Co - Operation Movement ) - सितंबर , 1920 ई ० में कलकत्ता ( कोलकाता ) में काँग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ । इसमें सरकारी स्कूलों , सरकारी उपाधियों , अदालतों तथा धारा सभाओं के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गया । जब यह प्रस्ताव पास हो गया , तो सारे देश में असहयोग आंदोलन आरंभ हो गया । महात्मा गाँधी ने गवर्नर जनरल द्वारा दी गई ' केसर - ए - हिंद ' उपाधि को लौटा दिया । विद्यार्थियों ने कक्षाओं का बहिष्कार किया । अनेक वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी । हजारों व्यक्तियों ने ' राय बहादुर ' जैसी उपाधियाँ लौटा दीं । नए एक्ट के अनुसार बनी धारा सभाओं का बहिष्कार कर दिया गया । कोई भी काँग्रेसी चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा नहीं हुआ । अधिकांश जनता ने मतदान नहीं किया । विदेशी कपड़ों तथा अन्य वस्तुओं का बहिष्कार किया गया । स्थान - स्थान पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई । स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया गया ।
नवंबर , 1921 ई ० में जब प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन हुआ , तो काँग्रेस ने उसका बहिष्कार किया । उसके मुंबई बंदरगाह पर पहुँचते ही शहर में दंगा हो गया । हर स्थान पर हड़तालों द्वारा इसका स्वागत किया गया । कई स्थानों पर पुलिस ने लाठियों के बल पर हड़ताल तुड़वाई । इस समय तक गाँधीजी के अलावा प्रायः सभी नेता जेलों में भरे पड़े थे । लार्ड चेम्सफोर्ड के स्थान पर लार्ड रीडिंग को भारत का वायसराय बनाया गया । आते ही उसको 21 दिसंबर , 1921 ई ० को कलकत्ता ( कोलकाता ) की यात्रा करनी पड़ी , क्योंकि इसी दिन प्रिंस ऑफ वेल्स को वहाँ पर पहुँचना था । नया वायसराय काँग्रेस से समझौता करना चाहता था , परंतु अली बंधुओं की रिहाई के संबंध में दोनों पक्षों में समझौता न हो सका । 1921 ई ० में दिसंबर के अंत में राजनीतिक बंदियों की संख्या 20,000 तक पहुँच गई थी । कुछ समय के बाद यह संख्या 35,000 तक जा पहुँची थी ।
1922 ई ० तक असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा तक जा पहुँचा था । मोतीलाल नेहरू , लाला लाजपतराय आदि बड़े - बड़े नेता जेलों में पड़े हुए थे । इसी समय असहयोग आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया । फरवरी , 1922 ई ० को गोरखपुर जिले के चौरी - चौरा नामक स्थान पर निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठीचार्ज किया । अतः क्रुद्ध प्रदर्शनकारियों ने थाने में आग लगा दी जिसमें 222 सिपाही जिंदा जलकर मर गये । गाँधीजी के अहिंसक आंदोलन को इससे भारी धक्का लगा । वे नहीं चाहते थे कि लोग हिंसा में लिप्त होकर आंदोलन के आदर्शों को भूल जायें । अतः उन्होंने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया । मोतीलाल नेहरू , लाला लाजपत राय जैसे नेता यह सुनकर दंग रह गये । जनसाधारण को भी लगा कि उनकी स्वतंत्रता प्राप्ति का सपना आसमान से गिरकर चूर - चूर हो गया है , परंतु प्रत्यक्ष रूप से गाँधीजी का विरोध करने के लिए कोई भी साहस न जुटा सका । गाँधीजी की लोकप्रियता हो कम होती देखकर सरकार ने मौके का फायदा उठाया और उनको छः वर्ष के लिए कारावास में भेज दिया ।