प्रश्न - सूचना के अधिकार से आप क्या समझते है ? इससे समाज में होने वाले लाभ और हानि के बारे में लिखें ।
उत्तर- सूचना का अधिकार ( Right of Information ) – सूचना का अधिकार अधिनियम को राष्ट्रपति ने 5 जून , को 2005 को अपनी मंजूरी दी थी तथा यह कानून 12 अक्टूबर , 2005 से पूरे देश में लागू हो गया । अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सूचना पाने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को दिया गया है । यदि कोई अधिकारी सूचना देने से मना करता है , तो उस पर 25 हजार रुपये जुर्माना और उसकी चरित्र पंजिका में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज हो सकेगी । इसे अन्तर्गत केन्द्र को एक केन्द्रीय सूचना आयोग गठित करना होगा । इस आयोग के एक मुख्य सूचना आयुक्त होंगे ।
इस आयोग के काम - काज की देख - रेख , दिशा - निर्देश और प्रबन्धन जैसे मामलों की शक्तियाँ मुख्य सूचना आयोग के पास होगी , जिसमें अन्य सूचना आयोग के पास होगी , जिसमें अन्य सूचना आयुक्त सहायता करेंगे । इसी तरह राज्य सरकारें भी प्रदेश सूचना अधिकारी नियुक्त करेंगो , जो मुख्य सूचना आयुक्त के प्रति जवाबदेह होंगे । इस अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र और राज्यों के प्रशासन के अतिरिक्त पंचायतें , स्थानीय निकाय और सरकार से धन पाने वाले गैर - सरकारी संगठन भी आते हैं ।
इसके अतिरिक्त इस कानून के अन्तर्गत जीवन और स्वतन्त्रता से जुड़े विषयों की सूचना पाने के आवेदनों पर अधिकारियों को 48 घण्टे के भीतर जवाब देना होगा । यह कानून जम्मू - कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया है । सुरक्षा एवं गुप्तचर संगठनों को इस अधिनियम की परिधि से दूर रखा गया है ।
लाभ - हानि – जहाँ तक सूचना के अधिकार के विस्तार से दूरगामी प्रभावों का प्रश्न है , तो जहाँ भी किसी व्यक्ति को विकास कार्यों या सार्वजनिक कार्यों में गड़बड़ी की संभावना मालूम होगी , वह जिम्मेदार अफसर या कर्मचारी से इसकी सूचना पाने का को थोड़े भी संदेह पर कि विकास कार्य ठीक से नहीं हुआ है या जितने लोगों को उचित कानूनी मजदूरी पर रोजगार मिलना चाहिए था , नहीं मिला तो वे सीधे इससे संबंधित कागजातों , बिल , वाउचर , मस्टररोल आदि के निरीक्षण की माँग कर सकते हैं । पंचायत या ब्लाक के रिकार्ड में कागज देखे जा सकते हैं कि किसी नहर , सड़क या स्कूल के भवन निर्माण का कार्य कब किया गया , इसमें कितना काम हुआ , कितना सीमेंट - ईंट लगाया गया व मजदूरी सहित कुल कितना खर्च हुआ । फिर गाँव में सड़क , नहर या स्कूल आदि निर्माण स्थलों की मौके पर जाँच कर , आसपास के लोगों से बातचीत कर यह अच्छी तरह पता लगाया जा सकता है कि जो सरकारी रिकार्ड में दिखाया गया है वह फर्जी है या सही । इस प्रकार भ्रष्टाचार पर प्रमाणिक लगाम लगायी जा सकती है । गाँववासी आवश्यकता पड़ने पर इस विषय पर एक जन सुनवाई में गाँव के सभी लोगों को बुलाया जायेगा व विकास कार्यों संबंधी जो जानकारी सूचना के अधिकार के उपयोग व गाँववासियों की अपनी जाँच से प्राप्त हुई है , उसे सबके सामने रखा जायेगा तथा जन सुनवाई में उनका अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जा सकता है ।
इसके कोई आश्चर्य नहीं कि आर ० टी ० आई ० कानून बनने के दस साल बाद भी इसकी संकल्पना अपने प्रारंभिक चरण में ही है । राज्यों में हालात बदतर हैं । वहाँ , सरकारी कर्मचारी सूचना देने को अपना काम नहीं मानते । सूचना अधिकार कानून के तहत सूचना माँगने वाले आम आवेदकों को राज्य में परेशान किया जाता है । अक्सर दोषी अधिकारियों को सजा नहीं दी जाती । आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है , पर उसका भी अनुपालन कम ही होता है । यही नहीं , राज्यों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से राजनीतिक तौर पर होती है , ऐसे में ज्यादातर सूचना आयुक्त इसे महज आय का एक जरिया भर मानते हैं अपनी आगे की महत्वाकांक्षा को पूरी और राजनीतिक करने में लगे रहते हैं । इसके बावजूद भी इसमें कोई दो राय नहीं है कि सूचनाधिकार कानून ने . सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करते हुए लाखों लोगों को न्याय दिलाया है । पर यह भी सच है कि हाल के वर्षों में आर ० टी ० आई ० कानून के दुरुपयोग में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ है । कई मामलों में इस कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है । लोकहित के नाम पर लोग निरर्थक , बेमानी और निजी सूचनाओं की माँग कर रहे हैं , जिससे मानव संसाधन और सार्वजनिक धन का व्यय हो रहा है । साथ ही , इसके द्वारा निजता में दखलअंदाजी की जा रही है ।
यदि इस कानून की दस साल की उपलब्धियों की बात करें तो आज आर ० टी ० आई ० ने सरकारी मुलाजिमों और राजनेताओं के मन में खौफ पैदा कर दिया है । वहीं , प्रतिकार में आर ० टी ० आई ० के तहत सूचना माँगने वालों को धमकी मिलना सामान्य बात हो गई है । अगर किसी सूचना से किसी बड़ी हस्ती को नुकसान होने की संभावना होती है , तो उस स्थिति में सूचना माँगने वाले की हत्या होना अस्वाभाविक नहीं हैं । कानून लागू होने से लेकर अब तक दर्जनों आर ० टी ० आई ० कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है । फिर भी तमाम खामियों के बावजूद आर ० टी ० आई ० कानून समाज के दबे - कुचले और वंचित लोगों के बीच उम्मदी की आखिरी किरण माना जा रहा
पूर्व मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह का भी मानना है कि आर ० टी ० आई ० के माध्यम से समाज के वंचित तबके को उसका अधिकार मिल सकता है । इस कानून के जरिए आमम आदमी शासन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकता है और यही कानून शासन को आम जनता के प्रति जवाबदेही भी बनाता है । इसमें कोई संदेह नहीं कि लोकतंत्र की वास्तविक परिभाषा और गाँधीजी की ग्राम स्वशासन की अवधारणा सूचना के अधिकार कानून से और अधिक पल्लवित हुई है । सूचना का अधिकार कनून भारत की उस मानसिक स्थिति को द्योतक है कि यह देश सिर्फ आँकड़ों में विकास नहीं चाहता , बल्कि विकास के साथ वह अपने नागरिकों को अधिकारों के प्रति जागरुक भी करना चाहता है । देश का सम्यक् विकास भी इसी अवधारणा को ध्यान में रखकर हो सकता है , अन्यथा एकांगी विकास बेमानी होगा ।